मंहगाई और बेरोगारी की मार देश की जनता करे पुकार

विक्रम दयाल

आज देश के कुछ राज्यों में चुनाव होरहें हैं. पक्ष और विपक्ष की दोनों पार्टियाँ चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी की शक्ति लगाते हुए अपनी अपनी पार्टियों को चुनाव जीतने का प्रचार कर रहें हैं.  जनता की तकलिफों पर कोई नही बोल रहा है. जनता की तकलीफ मंहगाई से जुड़ी हुई है. खाने पीने की हर वस्तुओं मंहगी से मंहगी होती जारही है. रसोई घर का वजट दूना होगया  है, और डगमगा गया है. अनाज सब्जियाँ, जो नित्य रसोई घर में इस्तेमाल होते आरही हैं सबके दाम बढ़ते चले जारहे हैं. टमाटर,  आलू, प्याज, के दाम आसमान पर हैं. गरीबों को आज भाजियों का स्वाद फीका लगने लगा है. देश में होने वाला चुनाव हो रहाहै. कौन जीतेगा? किसके हाथ में सत्ता जायेगी वहतो वक्त ही बतायेगा? देश में निरंतर हो रहे विकास कार्यों के बावजूद आज मंहगाई और बेरोजगारी एक समस्या बनकर उभरती जारही है। बहुत से लोग उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेने के बावजूद भी  इधर उधर अच्छी नौकरी के तलाश में  अब भी भटक रहें हैं। जो लोग कम पढे़ लिखें हैं ओ लोग भी निम्न स्तर की नौकरियाँ या कार्य करते हुए आज अपना गुजारा कर रहें हैं। केवल पेट ही भरने की बातें नही है, उन लोंगों के उपर अपने  परिवार को पालने और चलाने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है? कोई भूखे पेट रहकर काम नही कर सकता है. कुछ भी कहिए? मंहगाई लोगों की कमर तोड़ रही है.  छोटे बच्चों की स्कूल की फीस, युनीफार्म, स्कूल बस के खर्च, किताबें और कांपियाँ, अन्य घर और पारिवारिक खर्चों को पूरा करने के लिए पैसों की ही जरूरत पडती है। खाने पीने की वस्तुएँ, अनाज और तेल, पेट्रोल, डीजेल, रसोईं गैस, दाल, भांजी, चावल इत्यादि हर जीवनोपयोगी वस्तुओं में आग लगती चली जा रही है. सबकी कीमतें बेतहाशा बढ़ती जारही है. आजकल के समय में बढ़ती हुई मंहगाई के साथ ही दूसरी जटिल समस्या बेरोजगारी की भी है। जितनी रफ्तार से आज मंहगाई बढ़ रही है, उतनी ही रफ्तार से बेरोजगारी भी बढ़ रही है। बहुत सारी छोटी बड़ी कंपनियों में ताले लगे पड़े हैं। शहरों के सड़कों की पटरियों पर धंधे करने वालों के धंधे भी बंद होते जारहे हैं। क्यों कि पैदल चलने वालों को तकलीफें, और असुविघा न उठानी पडे़, शहरों के रास्ते साफ-सुतरें रहें, और पैदल चलने वालों को कोई कठिनाई न उठानी पड़े.  धंधे तो उन्हीं सड़कों पर चलते हैं, जिन रास्तों से आम लोंगों का आना जाना अधिक से अधिक होता है। सरकार की नजर में मंहगाई और बेरोजगारी की कोई समस्या ही नही है. सरकार मंहगाई और बेरोजगारी पर बात नही करती है. क्यों कि देश का विकास हो रहा है. सरकार चलाने वाले मंत्रियों को अनाज, खाद्य सामाग्री, भांजी इत्यादि की जरूरत ही नही पड़ती है. उनके परिवार में और बच्चों पर मंहगाई का कोई असर ही नही है. इसलिए सरकार में बैठे हुए नेता लोग मंहगाई पर बात नही करते हैं. वे लोग सदा खुशहाल पूर्वक अपना परिवारिक  जीवन जी रहे हैं. इसलिए कहना पड़ता है,  देश की ऐसी समस्यायों पर सभी नेताओं का ध्यान जाना चाहिए ? 

मंहगाई और बेरोजगारी की समस्यायें शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक है। ग्रामीण लोग भी नौकरी के लिए या नौकरी पाने के लिए  इस शहर से उस शहर तक नित्य दौड़ लगाते रहते हैं। नौकरी की समस्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। पढे़ लिखे और कम पढे़ लिखे दोनों ही परेशान है। किसी के पैर स्थाई रूप से कहीं नही टिक पारहें हैं।

सरकारी कार्यालयों में अब नवीन भर्तियाँ कम होने लगी है। जरूरत पड़ने पर अब कंट्रैक्ट पर कर्मचारी लिए जारहें हैं। स्थाई नौकरियाँ खत्म होती जारही हैं। शिक्षित लोगों की इज्जत खत्म होने लगी है। क्यों कि पढ़ लिख कर वह घर पर ही बैठे हैं या गुजारा करने के लिए कोई छोटे मोटे काम करने लगे हैं। इसतरह देश में अब बेरोजगारी की भी समस्यायें उत्पन्न होने लगी है।

खाद्य समाग्रियों की कीमतों में भी काफी वृद्धि होने से महंगाई पर सीधा असर पड़ा है। देश में बातें विकास पर ही होती रहती है। कभी भी मंहगाई और बेरोजगारी पर चर्चायें नही होरही  हैं। मंहगाई और बेरोजगारी की मार गांव और शहर दोनों तरफ है। आजकल सभी का ध्यान तीव्र गति से विकास की तरफ ही आकर्षित किया जारहा है। मंहगाई और बेरोजगारी पर चर्चायें कभी नही होती है। देश में मंहगाई और बेरोजगारी पर चर्चायें होनी चाहिए और इसके निवारण हेतु कोई ठोस कदम आज उठाने की जरूरत है।

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