अमन की शान डेस्क : उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद बिकरू काण्ड के आरोपी विकास दुबे के आवास से शुरू हुवे बुल्डोज़र एक्शन ने पुरे प्रदेश में अपने जलवे को बिखेरा। ऐसा लगने लगा कि एक समुदाय विशेष के खिलाफ बतौर दंड बुल्डोज़र का इस्तेमाल होना शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में बुलडोज़र का महिमामंडन भी किया गया है। उनके कई समर्थक राजनीतिक रैलियों में बुलडोज़र लेकर आते रहे। बुल्डोज़र की इस प्रसिद्धि को देखते हुवे कई अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी इस बुल्डोज़र ने खुद के इन्साफ की जगह बनाना शुरू कर दिया।
मगर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बुल्डोजर का इंजन ही निकाल दिया ताकि न रहेगा इंजन और न चलेगा बुल्डोज़र। कुछ लोग तो यह भी कहते हुवे दिखाई दे जायेगे कि बुल्डोज़र पर ही सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले से बुल्डोज़र च दिया है। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने बुधवार को देश में बुलडोज़र से संपत्तियों को तोड़े जाने को लेकर दिशा निर्देश जारी कर दिए है हैं। अदालत ने अपने फैसले में बुल्डोजर कार्यवाही को लेकर कई गंभीर मुद्दों पर भी अपने नज़रिए पेश किये है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने इस मुताल्लिक अपने फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति के घर या संपत्ति को सिर्फ़ इसलिए तोड़ दिया जाना कि उस पर अपराध के आरोप हैं, क़ानून के शासन के ख़िलाफ़ है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुल्डोज़र एक्शन पर दिशा निर्देश भी जारी कर दिया है। ये दिशा-निर्देश घरों को बुलडोज़र से तोड़े जाने के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए हैं। अपना आदेश सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा, ‘एक आम नागरिक के लिए घर बनाना कई सालों की मेहनत, सपनों और महत्वाकांक्षाओं का नतीजा होता है।’ जस्टिस गंवई के फैसले में दिले इस वक्तव्य ने एक शेर ज़ेहन में ताज़ा कर दिया कि ‘इंसान टूट जाता है एक आशियाँ बनाने में, तुम्हे शर्म नही आती है बस्तिया जलने में।’ अपना आदेश सुनाते हुए जस्टिस गवई और जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने कहा, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अगर कार्यपालिका मनमाने ढंग से किसी नागरिक के घर को केवल इस आधार पर तोड़ देती है कि वह किसी अपराध का अभियुक्त है तो कार्यपालिका क़ानून के शासन के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ कार्य करती है।’
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ‘अगर कार्यपालिका न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए किसी नागरिक पर केवल अभियुक्त होने के आधार पर विध्वंस का दंड लगाती है तो यह शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत का भी उल्लंघन है।’ सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि ऐसे मामलों में जो अधिकारी क़ानून अपने हाथ में लेते हुए इस तरह की मनमानी कार्रवाई करते हैं, उन्हें भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मनमानी, एकतरफ़ा और भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों को रोकने के लिए कुछ दिशा निर्देश ज़रूरी है।
अपने फै़सले में कोर्ट ने कहा, ‘लोगों की संपत्तियों और उनके घरों को तोड़कर उनकी आवाज़ को नहीं दबाया जा सकता है। एक व्यक्ति के पास जो सबसे बड़ी सुरक्षा होती है, वह उसका घर ही है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को किसी भी व्यक्ति की संपत्ति ध्वस्त करने से पहले क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और उन्हें सुनवाई का मौक़ा देना चाहिए। कोर्ट का कहना है कि अगर किसी विभाग या अधिकारी को मनमाने और गै़र-क़ानूनी व्यवहार की इजाज़त दी जाती है तो इस बात का ख़तरा है कि प्रतिशोध में लोगों की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा सकता है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये आदेश ऐसे मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सार्वजनिक स्थलों, जैसे कि सड़क पर कोई अवैध संरचना हो। किसी अदालत द्वारा दिए गए विध्वंस के आदेशों पर भी यह दिशा निर्देश लागू नहीं होंगे। इससे पहले अदालत ने अपने आदेश सुरक्षित करते हुए आश्वासन दिया था कि वह दोषी क़रार दिए गए अपराधियों की भी वैध निजी संपत्तियों की राज्य प्रायोजित दंडात्मक विध्वंस कार्रवाइयों से रक्षा करेगी। अदालत राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुई बुलडोज़र कार्रवाई के ख़िलाफ़ दायर याचिकाएं पर सुनवाई कर रही थी।
अपने फै़सले में कोर्ट ने कहा, ‘लोगों की संपत्तियों और उनके घरों को तोड़कर उनकी आवाज़ को नहीं दबाया जा सकता है। एक व्यक्ति के पास जो सबसे बड़ी सुरक्षा होती है, वह उसका घर ही है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को किसी भी व्यक्ति की संपत्ति ध्वस्त करने से पहले क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और उन्हें सुनवाई का मौक़ा देना चाहिए। कोर्ट का कहना है कि अगर किसी विभाग या अधिकारी को मनमाने और गै़र-क़ानूनी व्यवहार की इजाज़त दी जाती है तो इस बात का ख़तरा है कि प्रतिशोध में लोगों की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा सकता है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये आदेश ऐसे मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सार्वजनिक स्थलों, जैसे कि सड़क पर कोई अवैध संरचना हो। किसी अदालत द्वारा दिए गए विध्वंस के आदेशों पर भी यह दिशा निर्देश लागू नहीं होंगे। इससे पहले अदालत ने अपने आदेश सुरक्षित करते हुए आश्वासन दिया था कि वह दोषी क़रार दिए गए अपराधियों की भी वैध निजी संपत्तियों की राज्य प्रायोजित दंडात्मक विध्वंस कार्रवाइयों से रक्षा करेगी। अदालत राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुई बुलडोज़र कार्रवाई के ख़िलाफ़ दायर याचिकाएं पर सुनवाई कर रही थी।
राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुसलमान किराएदारों के कथित अपराध में शामिल होने के बाद सांप्रदायिक तनाव हुआ था। जिसके बाद प्रशासन ने उन घरों को गिरा दिया था, जिनमें ये परिवार रह रहे थे। दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाक़े में साल 2022 में हुई बुलडोज़र कार्रवाई के ख़िलाफ़ जमियत उलेमा ए हिंद ने भी याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान इस याचिका को भी इन याचिकाओं के साथ शामिल कर लिया गया था। कई अन्य राज्यों में हुई बुलडोज़र कार्रवाई को भी अदालत में चुनौती दी गई थी।
हाल ही में एक अन्य फ़ैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र एक्शन पर सख़्त रुख़ अपनाया था। उत्तर प्रदेश में एक मकान ध्वस्त किए जाने से जुड़े मामले पर फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में बुलडोज़र जस्टिस की कोई जगह नहीं है। इस मामले में, भारत के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था, ‘क़ानून के शासन में बुलडोज़र न्याय की कोई जगह नहीं है।’
उनका कहना था, ‘अगर इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता ख़त्म हो जाएगी।’ कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मुआवजे़ के रूप में पीड़ित व्यक्ति को 25 लाख रुपये देने का निर्देश भी दिया है। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज के रहने वाले मनोज टिबड़ेवाल आकाश का घर साल 2019 में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत ध्वस्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला 6 नवंबर को सुनाया था। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नागरिकों को संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी देकर उनकी आवाज़ को नहीं दबाया जा सकता है।
अदालत ने ऐसी परिस्थितियों से निबटने के लिए कई दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।
- पूर्व में कारण बताओ नोटिस दिए बिना विध्वंस की कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। इस नोटिस का उत्तर या तो स्थानीय नगरपालिका क़ानूनों में निर्धारित समय के अनुसार या नोटिस दिए जाने के पंद्रह दिनों के भीतर दिया जा सके।
- नोटिस पंजीकृत डाक से भेजा जाए और संपत्ति पर भी चिपकाया जाए। नोटिस में विध्वंस के आधार स्पष्ट हो।
- नोटिस को पूर्व तिथि पर जारी किए जाने के आरोपों से बचने के लिए, जैसे ही नोटिस संपत्ति के स्वामी या वहां रहने वालों को भेजा जाए, उसके बारे में जानकारी ज़िलाधिकारी कार्यालय या कलेक्टर ऑफ़िस में भी भेजी जाए।
- देश की हर स्थानीय नगर पालिका प्राधिकरण को, इन दिशा निर्देशों के प्रकाशन के तीन महीनों के भीतर एक डिज़िटल पोर्टल बनाना करना होगा, जिस पर नोटिस दिए जाने, नोटिस चिपकाए जाने, नोटिस के जवाब और इस संबंध में जारी आदेश की कॉपी सार्वजनिक हो।
- प्रशासन को पीड़ित को सुनवाई का मौक़ा देना होगा और इसकी बैठक की रिकॉर्डिंग भी की जाए।
- विध्वंस के आदेश के ख़िलाफ़ अपील किए जाने और न्यायिक समीक्षा का अवसर भी होना चाहिए।
- विध्वंस के आदेश को डिज़िटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
- संपत्ति के स्वामी को अवैध हिस्से को पंद्रह दिनों के भीतर स्वयं गिराने का अवसर दिया जाना चाहिए और अगर अपील प्राधिकरण विध्वंस आदेश पर स्थगन आदेश ना दे, तब ही विध्वंस की कार्रवाई की जानी चाहिए।
- विध्वंस की कार्रवाई की वीडियोग्राफ़ी की जानी चाहिए और विध्वंस रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए। किसी भी निर्देश का उल्लंघन होने पर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। अगर विध्वंस की कार्रवाई में अदालत के निर्देशों का उल्लंघन पाया जाता है तो संबंधित अधिकारियों अपने निजी खर्च पर गिराई गई संपत्ति की पुनर्स्थापना कराएंगे।